Thursday, November 30, 2023

Chamar jati ki safalta ki kahani

Chamar jati ki safalta ki kahani

साथियों चमारों की सफलता के ढेरो किस्से कहानियां मौजूद है आज की इस कड़ी में हमने चमारो की सफलता की एक शानदार कहानी को शामिल किया है जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते होंगे साथियों यह कहानी चमारों की सफलता में चार चांद लगाने वाली 

BATA कंपनी की कहानी है जिसे

एक चमार जाति के युवक ने शुरू

किया था 

बाटा कंपनी की नींव मध्य यूरोप के चेकोस्लोवाकिया में पड़ी थी। इस कंपनी की शुरुआत साल 1894 में थॉमस बाटा ने की थी। थॉमस बाटा का जन्म एक ऐसे गरीब चमार परिवार में हुआ था जो जूते बनाने का काम करते थे। जब कारोबार चल पड़ा तो उन्होंने कर्ज लेकर इसे और बड़ा बनाने की योजना बनाई।

अपनी कंपनी की शुरुआत की. देश में पहली शू कंपनी स्थापित हुई तो चीजें बदलनी शुरू हो गई. दो साल में देश में बाटा के जूतों की मांग इतनी बढ़ गई कि कंपनी को अपना उत्पादन दोगुना बढ़ाना पड़ा.


भारत में लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि कंपनी के नाम से वह शहर बाटानगर के नाम से पुकारा जाने लगा. साल 1939 तक कंपनी के पास 4 हज़ार के करीब कर्मचारी थे. कंपनी हर हफ्ते 3500 जोड़ी जूते बेचने लगी थी. बाटा टेनिस जूतों को डिजाइन करने वाली पहली कंपनी थी. सफ़ेद कैनवास से बने जूते लोगों को काफ़ी पसंद आए.


टेनिस के जूते स्कूल के लिए इस्तेमाल किए जाने लगे. साल 1980 के दशक में बाटा को खादी और पैरागॉन से कड़ी टक्कर मिलने लगी थी. ऐसे में कंपनी ने विज्ञापन का सहारा लिया और खुद को मार्केट में आगे रखा. कम कीमत, मजबूत और टिकाऊ होने के साथ आकर्षक टैग लाइन ने विदेशी कंपनी होकर ‘दिल है हिन्दुस्तानी’ की मिसाल बनी.


उनमें एक टैगलाइन थी- “टेटनस से सावधान रहें, एक छोटी सी चोट भी खतरनाक साबित हो सकती है, इसलिए जूता पहनें.” इस टैगलाइन के तहत कंपनी ने भारत में जूतों के चलन को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल किया. इसके अलावा एक और टैगलाइन- “फर्स्ट टू बाटा, देन टू स्कूल” जो काफी लोकप्रिय हुई थी. कंपनी की लोकप्रियता की एक बड़ी वजह इसका छोटा नाम भी है.


केवल चार अक्षर वाले दो शब्द लोगों की जुबान पर आसानी से आ जाते हैं. आज भारत में बाटा के 1375 रिटेल स्टोर हैं. इनमें 8500 कर्मचारी काम करते हैं. पिछले वर्ष कंपनी ने 5 करोड़ जूते बेचे हैं. मौजूदा समय में करीब 90 देशों में कारोबार चल रहा है. जहां 5000 स्टोर में करीब 30 हज़ार कर्मचारी काम करते हैं. प्रतिदिन 10 लाख से अधिक ग्राहक कंपनी के स्टोर में आते हैं



यह कहानी न तो TATA की है और, ना ही किसी BIRLA

या BAJA की.यह कहानी है BATA की है, हर

भारतीयों को लगता है कि BATA कंपनी भारतीय

कंपनी है लेकिन कभी एहसास भी नहीं हुआ होगा कि 

BATA एक विदेशी कंपनी है और इस भव्य कंपनी की 

स्थापना चमार जाति के TOMAS BATA ने 1894 में

की थी। हैरान परेशान होने की जरूरत नही है।

BATA परिवार चमार जाति से हैं BATA परिवार 8

पीढ़ियों से जूते चप्पल और चमड़े बनाने के कारोबार

से जुड़ा है यानी BATA परिवार 300 वर्ष से महान

और पवित्र कार्य चमड़ों के उत्पादन से जुड़े हुआ है 

BATA का जन्म 1876 में

CZECHOSLOVAKIA के एक छोटे से गांव ZLIN में हुआ था

पूरा परिवार मोची के कार्य से जुड़ा हुआ था इस छोटे से

शहर में BATA परिवार के अलावा बेहतरीन जूते

चप्पल कोई भी नही बना सकता था चमड़े के कार्य में

BATA परिवार का मान सम्मान था।

TOMAS  

1939 बाटा शू कंपनी विकसित करने के लिए कनाडा चले गए, जिसमें एक जूता फैक्ट्री और इंजीनियरिंग प्लांट भी शामिल था, जो एक शहर में केंद्रित था, जिस पर आज भी उनका नाम बटावा है । ओंटारियो. एक और विरासत भारत के कोलकाता में बाटानगर है , जिसमें मूल रूप से जूता कारखाना और लिपिक कर्मचारी रहते थे, 

CZECHOSLOVAKIA चेकोस्लोवाकिया

१ जनवरी १९९३ को यह देश बिना किसी हिंसा के दो अलग राष्ट्रों में बाँट गया जिन्हें चेक गणतंत्र और स्लोवाकिया के नामों से जाना जाता है। विश्व में अन्य देशों के हुए विभाजनों की तुलना में यह बंटवारा इतने कोमल और शांतिपूर्वक ढंग से हुआ था कि इस घटना को इतिहासकार और समीक्षक कभी-कभी 'मख़मली तलाक़' कहते हैं।

इस देश चेकोस्लोवाकिया में चर्मकार को नीच या

अछूत नहीं समझा जाता। उन्हें समाज में बराबरी का

मान सम्मान मिलता था। बल्कि यूरोप अमेरिका में किसी भी

श्रम उत्पादन कार्य से जुड़े लोगों का पुजारी वर्ग से

अधिक मान सम्मान है। घोड़ी पर चढ़ने और मूंछ

रखने पर वहां हत्या नही होती। बराबरी के महान

समाज में TOMAS BATA ने भी अपने परिवार का

पेशा अपनाया और मोची बन गए TOMAS बेहद

सस्ते और अच्छे गुणवत्ता के जूते चप्पल बनाकर

बेचते थे जिनसे उनकी बिक्री ज्यादा होती पर हैं ओर मुनाफा बहुत कम होता था 

TOMAS BATA ने जुते चप्पल निर्माण की कंपनी

खोलनी चाहिए। कंपनी खोलने में आर्थिक सहायता

का काम उनकी माँ ने किया और भाई बहन उनके

सहयोगी बने।

अपने घर के एक कमरे में 1894 में BATA कंपनी की

नींव डाली अच्छे गुणवत्ता के जूते सस्ते दामों में बेचने

के कारण ToMAS BATA को नुकसान हुआ कंपनी

चलाने का गुण सीखने के लिए लंदन में एक जूते की

फैक्टरी में मजदूर बनकर काम किया। मार्कंटिंग,

स्ट्टेटेजी, प्रोडक्शन, डिस्ट्रीब्यूशन और विज्ञापन का

गुण सीखकर उन्होंने दुबारा अपने देश आकर BATA

कंपनी में जान फूंक दी अच्छे गुणवत्ता के जूते चप्पल 

सस्ते दामों में बेचना जारी रखा ज्यादा सेल होने के 

कारण कंपनी को मुनाफा हुआ। उस वक्त अच्छे

गुणवत्ता के वस्तुओं का अर्थ था। महंगे दामों में

बिकने वाली वस्तु जो केवल अमीर आदमी खरीद

सकते थे चमार जाति के काबिल उद्योगपति

TOMAS BATA ने इस धारणा को ध्वस्त कर नई

धारणा गड़ी अच्छे और बेहतरीन गुणवत्ता की वस्तुएं

भी सस्ते दा्मों में मिल सकती है और BATA के जूते

चप्पल इनमें से एक थे।

आज से 100 साल पहले तक जूते हो या चप्पल इसे

अमीरों की पहनने वाली वस्तु समझा जाता था गरीब

तो नंगे पांव ट्रेन में सफर करके बम्बई कलकत्ता में

मजदूरी करने आते थे। TOMAS BATA का सपना

है अमीर हो या गरीब BATA के जूते हर पैर में होने

चाहिए पूरे भारत में फैल कर कंपनी ने अफ्रीका में भी

अपना विस्तार किया जहां कई कंपनियां जाने पर

इसलिए कतराती थीं गरीब देश अफ्रीकी जिसके पास

खाने को नही है वे जूते चप्पल कहां से खरीदेंगे ?

लेकिन TOMAS BATA ने अफ्रीका महाद्वीप के पूरे

देश में सस्ते दामों में जूते चप्पल बेचकर हर गरीब के

पांव में जूते चप्पल पहना दिया। 1932 में TOMAS

BATA की हवाई जहाज दुर्घटना में मृत्यु हो गई.उनके

निधन के बाद उनके भाई और उनके पुत्र ने BATA

कंपनी को हर देश में सबकी पसंदीदा कंपनी बना

दिया।

BATA केवल जूते चप्पल का ब्रांड नही, भरोसे का भी

ब्रांड है. चर्मकार TOMAS BATA ने कहा था मुनाफे

के साथ वो उपभोक्ताओं का भरोसा भी कमाना चाहते

हैं BATA आज भी भरोसे का नाम है। अंतिम पंत्ति

TOMAS BATA का जन्म अगर भारत में हुआ होता

तो यहां भेदभाव करने वाला धर्म, जातीय वर्ण

व्यवस्था वाला समाज ToMAS BATA को

उद्योगपति नही केवल मोची बने रहने का अधिकार

देता।

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